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एक अलौकिक,एशिया के सबसे बड़े शिवलिंग और एक रात्रि में बने अद्भुत मंदिर का इतिहास

कंक्रीट के जंगलों को पीछे छोड़ प्रकृति की हरी भरी गोद में, बेतवा नदी के किनारे बना अद्भुत वास्तुकला का यह नमूना राजा भोज के समय तैयार करवाया गया था..

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June 24, 2022
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इस मंदिर को एक ही रात्रि में बनाया जाना था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सुबह होते ही इस मंदिर का निर्माण कार्य रोक दिया गया। उस समय छत के बनाए जाने का कार्य चल रहा था, लेकिन सूर्योदय होने के साथ ही मंदिर का निर्माण कार्य रोक दिया गया, तब से यह मंदिर अधूरा ही है।

भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 29 किमी दूर स्थित भोजपुर की पहाड़ी पर एक विशाल,शिव मंदिर हैं। यह भोजपुर शिव मंदिर या भोजेश्वर मंदिर के नाम से विश्व प्रसिद्ध हैं। इतिहासकार कहते हैं कि भोजपुर तथा इस शिव मंदिर का निर्माण परमार वंश के प्रसिद्ध राजा भोज (1010 ई – 1055 ई ) द्वारा किया करवाया गया था।

रायसेन जिले की गौहर गंज तहसील के ओबेदुल्ला विकास खंड में स्थित इस अद्भुत शिव मंदिर को 11 वीं सदी में परमार वंश के प्रथम राजा भोज ने बनवाया था। कंक्रीट के जंगलों को पीछे छोड़ प्रकृति की हरी भरी गोद में, बेतवा नदी के किनारे बना अद्भुत वास्तुकला का यह नमूना राजा भोज के वास्तुविदों के सहयोग से तैयार हुआ था। इस मंदिर की विशेषता इसका विशाल शिवलिंग हैं जो कि विश्व का एक ही पत्थर से निर्मित सबसे बड़ा शिवलिंग हैं। सम्पूर्ण शिवलिंग कि लम्बाई 5.5 मीटर (18 फीट ), व्यास 2.3 मीटर (7.5 फीट ), तथा केवल शिवलिंग कि लम्बाई 3.85 मीटर (12 फीट) है।


अधूरा है भोजपुर का ये शिव मंदिर
भोजेश्वर मंदिर का अधूरा निर्माण हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर के अधूरे होने के पीछे एक बड़ा कारण है। जानकार कहते हैं। इस मंदिर को किसी वजह से एक ही रात में बनाया जाना था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सुबह होते ही इस मंदिर का निर्माण कार्य रोक दिया गया। उस समय छत के बनाए जाने का कार्य चल रहा था, लेकिन सूर्योदय होने के साथ ही मंदिर का निर्माण कार्य रोक दिया गया, तब से ये मंदिर अधूरा ही है। लेकिन पुरातत्व विभाग ऐसी किसी भी घटना की पुष्टि नहीं की गई है।

माना जाता है कि इस्लाम के आगमन के पहले हुए था निर्माण
इतिहासकारों एवं पुरातत्विदों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण भारत में इस्लाम के आगमन के पहले हुआ था अतः इस मंदिर के गर्भगृह के ऊपर बनी अधूरी गुम्बदाकार छत भारत में ही गुम्बद निर्माण के प्रचलन को प्रमाणित करती है। भले ही उनके निर्माण की तकनीक भिन्न हो। कुछ विद्धान इसे भारत में सबसे पहले गुम्बदीय छत वाली इमारत भी मानते हैं। इस मंदिर का दरवाजा भी किसी हिंदू इमारत के दरवाजों में सबसे बड़ा है।

इस मंदिर की विशेषता इसके 40 फीट ऊंचाई वाले इसके चार स्तम्भ भी हैं। गर्भगृह की अधूरी बनी छत इन्हीं चार स्तंभों पर टिकी है। इसके अतिरिक्त भूविन्यास, सतम्भ, शिखर, कलश और चट्टानों की सतह पर आशुलेख की तरह उत्कीर्ण नहीं किए हुए हैं। भोजेश्वर मंदिर के विस्तृत चबूतरे पर ही मंदिर के अन्य हिस्सों, मंडप, महामंडप तथा अंतराल बनाने की योजना थी। ऐसा मंदिर के निकट के पत्थरों पर बने मंदिर- योजना से संबद्ध नक्शों से पता चलता है

अनोखे ढंग से होती है इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा
भक्तों की आस्था के इस केन्द्र में भगवान शिव की पूजा अर्चना करना का ढंग भी बिल्कुल अनोखा है। शिवलिंग इतना बड़ा है कि उसका अभिषेक धरती पर खड़े होकर नहीं किया जा सकता। अंदर विशालकाय शिवलिंग के कारण इतनी जगह नहीं बचती कि किसी अन्य तरीके से शिवलिंग किया जा सके। इसलिए हमेशा से ही इस शिवलिंग का अभिषेक और पूजन इसकी जलहरी पर चढ़कर ही किया जाता है। कुछ समय पहले तक आम श्रद्धालु भी जलहरी तक जा सकते थे, लेकिन अब सिर्फ पुजारी ही दिन में दो बार जलहरी पर चढ़कर भगवान का अभिषेक और पूजा करते हैं।

एक मान्यता यह भी है कि यह मंदिर पाण्डवों द्वारा निर्माण कराया गया।
इसलिए इस मंदिर को पांडवकालीन भी माना जाता है। कहा जाता है कि पांडवों के अज्ञातवास के दौरान वे भोपाल के नजदीक भीमबेटका में भी कुछ समय के लिए निवासरत थे। इसी समय में उन्होंने माता कुन्ती की पूजा के लिए एक भव्य शिव मंदिर का निर्माण किया था। इस मंदिर को बड़े बड़े पत्थरों से स्वयं भीम ने तैयार किया था। ताकि पास ही बहने वाली बेतवा नही में स्नान के बाद माता कुन्ती भगवान शिव की उपासना कर सकें। कहा जाता है कि कालान्तर में यही विशाल शिवलिंग वाला मन्दिर। राजा भोज के समय विकसित होकर भोजेश्वर महादेव मंदिर कहलाया।

भोजेश्वर मंदिर के पीछे के भाग में बना ढलान है, जिसका उपयोग निर्माणाधीन मंदिर के समय विशाल पत्थरों को ढोने के लिए किया गया था। पूरे विश्व में कहीं भी अवयवों को संरचना के ऊपर तक पहुंचाने के लिए ऐसी प्राचीन भव्य निर्माण तकनीक उपलब्ध नहीं है। ये एक प्रमाण के तौर पर है, जिससे ये रहस्य खुल जाता है कि आखिर कैसे कई टन भार वाले विशाल पत्थरों का मंदिर क शीर्ष तक पहुचाया गया।

वर्ष में दो बार यह मेला आयोजित होता है।

इस प्रसिद्ध स्थल में वर्ष में दो बार वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है जो मकर संक्रांति एंव  महाशिवरात्रि पर्व के समय होता है। इस धार्मिक उत्सव में सम्मिलित होने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। महाशिवरात्रि पर यहां तीन दिवसीय भोजपुर महोत्सव का भी आयोजन किया जाने लगा है। भोजपुर शिव मंदिर के बिल्कुल सामने पश्चमी दिशा में एक गुफा हैं यह पार्वती गुफा के नाम से जानी जाती हैं। इस गुफा में पुरातात्विक महत्तव कि अनेक मूर्तियां हैं। इसी मंदिर परिसर में आचार्य माटूंगा का समाधि स्थल हैं जिन्होंने भक्तांबर स्त्रोत लिखा था।

सदियों से ये मंदिर इसी तरह आस्था का केन्द्र बना हुआ है, अपनी भव्य, विशाल संरचना और ऐतिहासिक महत्व के कारण पुरातत्व विभाग के संरक्षण में आने के बाद इसे इसके मूल स्वरूप में लाने का प्रयास भी जारी है। भले ही वक्त ही मार से इसके भौतिक स्वरूप में कुछ बदलाव हुए हों, भले ही मनुष्यों की बदलती प्रवृत्तियों ने इसे चोट पहुंचाई हो, लेकिन जिस शक्ति को आधार मान कर इस मंदिर की स्थापना की गई होगी। उसकी अलौकिकता की झलक आज भी इस जगह दिखाई देती है।
जहाँ वर्ष भर देश विदेश के लाखो श्रद्धालु यहा पहुंचते है।

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